सीखो मुस्कुराना मेरे मेहबूब से
ग़म भी छुपाता है वो अज़ीब से
कभी रोता नहीं बस आ जाता है
मुस्कुराहट की दुनिया के करीब से।
कमबख्त दिल का मारा
हर हाल में बेचारा
लब पे लिए दुआ ज्यों
रकीब हो कुँआरा
इस ओर जब भी देखा पशेमान तुझको पाया
खुशहाल चाक दामन फटेहाल हों गरीब से।
जुल्मोसितम है या कहो इसे आदत
दुनिया है इश्क की या कहो शहादत
बस देने का नाम रहता है यहां
या दिल हो जान हो या खुशी की आदत।
हम तो छुपे थे अपने ही कफन में
या ग़म के बादल थे ढके अपना दामन
तुम्हारी यादों को ओढ़ा किए
जिए जा रहे हैं यूं अरमां बिना।
No comments:
Post a Comment